✨ "मैं हूँ" – यीशु मसीह के इस कथन पर क्यों भड़क उठे यहूदी? 😮🪨
📝 परिचय (Introduction)bible hindi
यीशु मसीह का जीवन और उनकी शिक्षाएं अद्भुत थीं। उन्होंने चमत्कार किए, प्रेम और क्षमा का संदेश दिया, और परमेश्वर के राज्य की घोषणा की। लेकिन जब उन्होंने एक विशेष वाक्य कहा — "मैं हूँ", तो यहूदी बहुत गुस्सा हो गए और उन्हें पत्थर मारने की कोशिश की। 🤯
पर सवाल यह है कि यीशु मसीह ने क्या कहा था ? में हूँ — क्या सिर्फ "मैं हूँ" कहने से किसी को मारने की कोशिश करना जायज़ था? इस ब्लॉग में हम इस विषय को गहराई से समझेंगे, बाइबल के वचनों के साथ, और जानेंगे कि ये शब्द यहूदियों को इतने अपमानजनक क्यों लगे। 📖
😲 यीशु मसीह ने क्या कहा था ? ( में हूँ ) जानिए bible hindi.ऐसा क्या कहा कि लोग पत्थर उठाने लगे?
कल्पना कीजिए, आप किसी सार्वजनिक जगह पर खड़े हैं। लोग धार्मिक बातों पर चर्चा कर रहे हैं, कुछ अपने विश्वासों को साझा कर रहे हैं। तभी एक व्यक्ति खड़ा होता है और आत्मविश्वास से कहता है – "मैं हूँ!"
यह सुनते ही माहौल बदल जाता है। लोग गुस्से में आ जाते हैं, उनकी आँखों में आग जलने लगती है, और वे पत्थर उठाने के लिए दौड़ पड़ते हैं! 😠🪨
क्यों? सिर्फ इसलिए कि उसने कहा "मैं हूँ"?
तो आई ये समजते है की यीशु मसीह ने क्या कहा था ? ( में हूँ ) जानिए bible hindi👇
जब प्रभु यीशु मसीह ने bible hindi यूहन्ना 8:58 में कहा – "मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ", तो यह कोई साधारण वाक्य नहीं था। यह एक ऐसा घोषणा-पत्र था जिसमें उन्होंने अपनी दिव्य पहचान को उजागर किया। आम लोगों के लिए यह शायद एक सामान्य वाक्य लग सकता है, लेकिन यहूदियों के लिए इसका अर्थ गहरा और गंभीर था। पुराने नियम में जब मूसा ने परमेश्वर से उसका नाम पूछा, तो परमेश्वर ने उत्तर दिया – "मैं जो हूँ, वह हूँ" (निर्गमन 3:14)। यही नाम परमेश्वर ने मूसा को दिया ताकि वह जाकर इस्राएलियों से कह सके – "मैं हूँ ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है।" इसलिए "मैं हूँ" (I AM) केवल परमेश्वर के लिए प्रयुक्त होने वाला नाम था, जो उसकी शाश्वतता, अनंतता और सर्वोच्चता को दर्शाता था।
जब यीशु ने वही शब्द बोले, तो यह यहूदियों को यह प्रतीत हुआ कि वे स्वयं को परमेश्वर के समान बता रहे हैं – जो उनके अनुसार एक गंभीर ईशनिंदा थी। यहूदी केवल एक मनुष्य को देख रहे थे, लेकिन वे यह नहीं समझ सके कि उस मनुष्य में परमेश्वर की आत्मा है। उन्होंने बाहरी रूप देखा, लेकिन भीतर के सत्य को नहीं पहचाना। यीशु यह स्पष्ट करना चाहते थे कि वे केवल एक शिक्षक, नबी या चमत्कारी व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि वे स्वयं वही परमेश्वर हैं जो अब्राहम, इसहाक और याकूब के समय से हैं, जो जलती झाड़ी में मूसा से बोले थे। "मैं हूँ" कहना मतलब था – "मैं वही परमेश्वर हूँ जो आदि से अनंत तक है, जिसने तुम्हें बनाया, और अब तुम्हारे उद्धार के लिए आया हूँ।"
यीशु मसीह यह जताना चाहते थे कि उनका अस्तित्व समय से परे है, उनका कार्य केवल शिक्षा देना नहीं बल्कि उद्धार देना है, और उनका लक्ष्य लोगों को परम सत्य की ओर ले जाना है। वे जनता से और यहूदी नेताओं से यही उम्मीद रखते थे कि वे उनके वचनों में छुपे सत्य को समझें, परंतु धार्मिक अंधता और हठ के कारण वे उस दिव्यता को पहचान न सके। इसीलिए उन्होंने पत्थर उठाए – नासमझी और भय के कारण, जबकि यीशु का "मैं हूँ" आज भी संसार के लिए एक दिव्य उद्घोषणा है कि परमेश्वर मनुष्य बनकर हमारे बीच आया था।
दरअसल, यह कोई आम व्यक्ति नहीं था, बल्कि प्रभु यीशु मसीह थे। और यह दो शब्द – "मैं हूँ" – कोई सामान्य वाक्य नहीं थे, बल्कि एक ऐसी आत्मघोषणा थी जिसने यहूदी धर्मगुरुओं की नींव हिला दी थी। यह बात यूहन्ना 8:58 में सामने आती है, जहाँ यीशु ने कहा:
"मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ।"
यह सुनते ही लोगों ने पत्थर उठा लिए। क्यों? क्योंकि "मैं हूँ" (I AM) शब्द पुराने नियम में केवल परमेश्वर के लिए उपयोग होते थे। जब मूसा ने परमेश्वर से उसका नाम पूछा, तो उसने कहा:
"मैं जो हूँ, वह हूँ" – (निर्गमन 3:14)
इसलिए, जब यीशु ने वही शब्द बोले, तो वे सीधे तौर पर यह कह रहे थे कि "मैं वही परमेश्वर हूँ जिसने मूसा से झाड़ी में बात की थी।" यह यहूदियों के लिए ईशनिंदा थी, और लैव्यव्यवस्था 24:16 के अनुसार, ईशनिंदा करने वाले को पत्थर मारकर मारना उचित था।
यह सिर्फ शब्दों की बात नहीं थी, यह पहचान की बात थी। यहूदी जानते थे कि यीशु खुद को मसीहा या भविष्यवक्ता से भी ऊँचा कह रहे हैं – वे कह रहे थे कि वे स्वयं ईश्वर हैं। और यही बात उन्हें असहनीय लगी।
पर सवाल यह है कि क्या यीशु सच में वही थे जो उन्होंने कहा? क्या उनके जीवन, चमत्कार और शिक्षाओं से यह साबित होता है कि उनका "मैं हूँ" केवल दावा नहीं, बल्कि परम सत्य था?
👉 इस ब्लॉग में हम इसी गूढ़ रहस्य को गहराई से समझेंगे – बाइबिल वचनों, ऐतिहासिक संदर्भ और आत्मिक दृष्टिकोण के साथ।
more blog 👧👉:यीशु ने प्रार्थना से भी ज्यादा "परमेश्वर के वचन" को प्राथमिकता दी।
our site 👨👉: https://jesusinfo7.blogspot.com
😇 कुछ अहम सवाल जवाब जो आप को समज ने चाहीये 👇
📜 1. "मैं हूँ" – इसका असली मतलब क्या था?
यीशु मसीह ने यूहन्ना 8:58 में कहा:
"यीशु ने उनसे कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ।" (यूहन्ना 8:58)
यह कथन साधारण नहीं था। "मैं हूँ" (I AM) शब्दों का प्रयोग पुराने नियम में स्वयं परमेश्वर ने किया था जब मूसा ने झाड़ी में जलती आग में परमेश्वर से पूछा:
"मूसा ने कहा, यदि मैं इस्राएलियों के पास जाऊं और कहूं कि तुम्हारे पितरों के परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, और वे मुझसे पूछें, उसका नाम क्या है? तब मैं उन्हें क्या कहूं?"
ईश्वर ने मूसा से कहा: “मैं जो हूँ, वह हूँ।” (निर्गमन 3:13-14)
यहाँ पर परमेश्वर ने अपना नाम "मैं हूँ" बताया था — Hebrew में "Ehyeh Asher Ehyeh", यानि I AM THAT I AM।
💡 जब यीशु ने कहा कि "मैं हूँ", तो वे सीधे तौर पर खुद को वही "मैं हूँ" कह रहे थे — यानी वे कह रहे थे कि "मैं परमेश्वर हूँ!" 😮🙏
😠 2. यहूदियों की प्रतिक्रिया: पत्थर क्यों उठाए?
जैसे ही यीशु ने यह कहा, यहूदी उग्र हो गए:
"तब उन्होंने उस पर पत्थर उठाए कि उस पर फेंकें; पर यीशु ने अपने आप को छिपा लिया और मन्दिर से निकल गया।"
(यूहन्ना 8:59)
यहूदियों के लिए यह कथन ईशनिंदा (Blasphemy) के बराबर था। क्योंकि उनके अनुसार कोई भी इंसान खुद को परमेश्वर कैसे कह सकता है? यह उनकी धार्मिक भावनाओं के खिलाफ था।bible hindi.
📌 क्यों इतना गुस्सा आया?
-
यहूदी मानते थे कि परमेश्वर एक है और अद्वितीय है (व्यवस्थाविवरण 6:4)।
-
वे मानते थे कि कोई भी मनुष्य अगर खुद को परमेश्वर कहे, तो वो धर्मद्रोही है।
-
लैव्यव्यवस्था 24:16 में लिखा है:
"जो कोई यहोवा के नाम की निन्दा करे, वह निश्चित ही मर जाए; सारी मण्डली के लोग उसे पत्थरवाह करें।"
तो उनके अनुसार, यीशु की यह घोषणा निन्दनीय और मृत्यु दंड योग्य अपराध थी।
💬 3. यीशु के और भी "मैं हूँ" वचन
यीशु ने कई बार "मैं हूँ" का प्रयोग किया — हर बार एक गहरे आत्मिक अर्थ के साथ। आइए देखें:
🥖 "मैं जीवन की रोटी हूँ" (यूहन्ना 6:35)
यीशु आत्मिक भूख को मिटाने वाले हैं।
💡 "मैं जगत की ज्योति हूँ" (यूहन्ना 8:12)
अंधकार में दिशा देने वाले।
🚪 "मैं द्वार हूँ" (यूहन्ना 10:9)
उद्धार पाने का मार्ग।
🐑 "मैं अच्छा चरवाहा हूँ" (यूहन्ना 10:11)
वह जो अपने भेड़ों के लिए जान देता है।
🛤️ "मैं मार्ग, सत्य और जीवन हूँ" (यूहन्ना 14:6)
परमेश्वर तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता।
🌱 "मैं पुनरुत्थान और जीवन हूँ" (यूहन्ना 11:25)
जो मरे हुए को भी जीवन देता है।
हर बार "मैं हूँ" कहकर यीशु बता रहे थे कि वे परमेश्वर के समान हैं — और यहूदी इसे सहन नहीं कर पाए। 😓
🔥 4. धार्मिक नेताओं की जलन और भय
यहूदी नेता पहले ही यीशु से जलते थे क्योंकि:
-
लोग उनके पीछे चलने लगे थे।
-
उन्होंने उनकी धार्मिक परंपराओं को चुनौती दी।
-
उन्होंने मंदिर को "डाकुओं की खोह" कहा (मत्ती 21:13)।
जब यीशु ने "मैं हूँ" कहा, तो यह उनके लिए आखिरी सीमा थी। यह न सिर्फ धार्मिक चुनौती थी बल्कि उनकी सत्ता के लिए भी ख़तरा था।
🧠 5. मनुष्य के दृष्टिकोण से सोचें तो…
अगर हम मानव मन से सोचें तो यह समझना आसान है कि:
-
कोई इंसान अगर खुद को परमेश्वर कहे तो लोग उसे झूठा या पागल समझ सकते हैं।
-
यहूदियों के लिए यह धार्मिक अपमान था।
-
लेकिन यीशु के कार्य और उनके शब्दों की सामर्थ उन्हें एक साधारण मनुष्य नहीं ठहराती।
👉 उनका उद्देश्य सच्चाई प्रकट करना था, न कि अपमान करना।
📚 6. क्या यीशु सच में परमेश्वर थे?
यीशु ने केवल शब्दों से नहीं, बल्कि कार्यों से भी साबित किया कि वे परमेश्वर हैं:
-
उन्होंने अंधों को दृष्टि दी।
-
मुर्दों को जिलाया (यूहन्ना 11:43-44)।
-
पापों को क्षमा किया — जो केवल परमेश्वर ही कर सकता है (मरकुस 2:5-7)।
इन बातों से यह स्पष्ट होता है कि "मैं हूँ" कहना कोई घमंड नहीं था, बल्कि सत्य की घोषणा थी। 🙌
📖 7. यीशु के इस कथन का आज हम पर क्या असर होता है?
यीशु का "मैं हूँ" कहना आज भी हमें याद दिलाता है कि:
-
वह हमारे जीवन का केंद्र होना चाहिए।
-
वह हमारा मार्ग, सत्य और जीवन है।
-
वह हमारे अंधकार में रोशनी बनकर आता है।
-
वह परमेश्वर के समान सामर्थी और प्रेमी है।
अगर हम उसे अपने जीवन में स्वीकार करें, तो हमें अनंत जीवन मिलता है (यूहन्ना 3:16)। ❤️
✨ "मैं हूँ" – हमारे जीवन में इसका कैसे उपयोग करें?
जब प्रभु यीशु ने कहा "मैं हूँ", तो उन्होंने यह बताया कि हर स्थिति में, हर समय, वे हमारे लिए पर्याप्त हैं।
इस वचन को अपने जीवन में अप्लाई करने के 5 व्यावहारिक तरीके👇
-
विश्वास में स्थिरता लाएँ:
जब आप जीवन की अनिश्चितताओं से जूझ रहे हों, तब याद रखें कि यीशु ने कहा – "मैं हूँ।"
यानी, वे समय के ऊपर हैं। जब सब कुछ बदल रहा हो, तब भी वे नहीं बदलते।
Use it in prayer: "हे प्रभु, आप वही ‘मैं हूँ’ हैं – सदा रहनेवाले। मुझे स्थिरता दें।" -
डर और चिंता को त्यागें:
जब यीशु ने कहा "मैं हूँ", तब उन्होंने यह जताया कि वे हमारे हर डर से बड़े हैं।
चाहे आर्थिक परेशानी हो या पारिवारिक संघर्ष, हमें यह याद रखना चाहिए कि –
"यदि प्रभु मेरे साथ हैं, तो मुझे किसका भय?" -
आत्मिक पहचान मजबूत करें:
जब हम समझते हैं कि "मैं हूँ" हमारे भीतर निवास करता है (2 कुरिन्थियों 13:5), तब हम आत्मिक रूप से जाग्रत होते हैं।
हमारी पहचान अब दुनिया की राय से नहीं, बल्कि यीशु की उपस्थिति से तय होती है। -
दूसरों के सामने गवाही दें:
"मैं हूँ" का अर्थ है – प्रभु हर परिस्थिति में पर्याप्त हैं। जब आप दूसरों के साथ अपने जीवन की गवाही साझा करते हैं, तो उन्हें भी आशा मिलती है।
कहें: "जब मैं टूटा हुआ था, तब ‘मैं हूँ’ ने मुझे उठाया।" -
हर दिन परमेश्वर की निकटता में चलें:
यीशु ने कहा, "मैं जीवन की रोटी हूँ" (यूहन्ना 6:35)।
इसका मतलब है – जैसे हमें रोज़ रोटी चाहिए, वैसे ही हमें हर दिन यीशु की संगति चाहिए।
बाइबल पढ़ें, प्रार्थना करें और आत्मा में चलें।
🙋♂️ 5 सामान्य प्रश्न (FAQs) – "मैं हूँ" के बारे में
-
प्रश्न: "मैं हूँ" बोलने से यहूदी इतने नाराज़ क्यों हुए?
उत्तर: क्योंकि ये शब्द केवल परमेश्वर के लिए प्रयोग होते थे। जब यीशु ने यह कहा, तो यह खुद को परमेश्वर घोषित करना था – जिसे उन्होंने ईशनिंदा माना। -
प्रश्न: क्या "मैं हूँ" केवल एक दावा था या उसका प्रमाण भी है?
उत्तर: यीशु के जीवन, चमत्कारों, मृत्यु और पुनरुत्थान ने प्रमाणित किया कि उनका दावा सत्य था। -
प्रश्न: क्या "मैं हूँ" का वचन आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है?
उत्तर: बिल्कुल! यह हमें बताता है कि यीशु हर समय, हर परिस्थिति में हमारे साथ हैं – जैसे वो तब थे, वैसे ही आज भी हैं। -
प्रश्न: हम "मैं हूँ" के वचन को कैसे अपने परिवार में लागू करें?
उत्तर: जब आप बच्चों को यीशु की स्थिरता और सुरक्षा सिखाते हैं, उन्हें प्रार्थना करना सिखाते हैं, तब आप इस वचन को घर में ला रहे हैं। -
प्रश्न: क्या "मैं हूँ" को हम व्यक्तिगत प्रार्थना में प्रयोग कर सकते हैं?
उत्तर: हाँ, बिल्कुल! कहें – "हे प्रभु, जब मैं खोया हुआ था, आपने कहा 'मैं हूँ'; जब मैं टूटा था, तब भी आप वही थे।"
🙏 निष्कर्ष (Conclusion)
यीशु मसीह का "मैं हूँ" कहना साधारण नहीं था। यह परमेश्वरत्व की घोषणा थी, और यही कारण था कि यहूदी क्रोधित हुए और उन्हें मारना चाहा।
लेकिन यीशु ने सच्चाई से पीछे हटना नहीं चुना — क्योंकि उन्होंने हमारे लिए सत्य को प्रकट किया, चाहे उसकी कीमत उनकी जान ही क्यों न हो। ✝️
आज भी, अगर हम इस "मैं हूँ" को समझें, तो हम अंधकार से रोशनी की ओर, मृत्यु से जीवन की ओर बढ़ सकते हैं। 🌟
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें