jesus प्रभु येशु के 12 chelo ke नाम जानिए 12 शिष्य bible hindi.विश्वास, सेवा और बलिदान के आधार स्तंभ।
क्या आप जानते हैं कि यीशु के चेले (प्रेरित) केवल 12 शिष्य नहीं थे, बल्कि वे परमेश्वर के कार्य को फैलाने के लिए चुनिंदा सैनिक थे?
🤔 यह वे लोग थे, जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी पूरी तरह से प्रभु jesus के हाथों में समर्पित कर दी थी, और जिनका जीवन विश्वास, समर्पण और सेवा का एक अद्वितीय उदाहरण है। 🙌प्रभु येशु के इन 12 chelo ke मार्ग कभी भी आसान नहीं थे , लेकिन उनकी यात्रा ने हमें यह सिखाया कि विश्वास का रास्ता कठिनाइयों से भरा हो सकता है, फिर भी यह हमें परमेश्वर की योजना का हिस्सा बनने का एक अद्भुत अवसर देता है। 💪
क्या आप जानना चाहते हैं कि ये 12 शिष्य (प्रेरितों) ने क्या किया? 🤔 उन्होंने क्या खाया, कहां यात्रा की, और jesus के साथ उनके संबंध कैसे थे? हर एक प्रेरित का जीवन अनूठा था, और उनके बलिदान आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं। 🌟इस ब्लॉग में हम इन प्रेरितों के जीवन की गहराई में जाएंगे, उनकी संघर्षों और विश्वास की कहानियों को उजागर करेंगे, और देखेंगे कि कैसे ये शिष्य आज भी हमारे लिए एक प्रेरणा के स्रोत हैं। ✨
आइए, साथ मिलकर जानें और समझें bible hindi के जरिए प्रभु यीशु के उन 12 प्रेरितों की अद्भुत यात्रा को,बाइबल हिन्दी के जरिए जिन्होंने न केवल अपने समय में बल्कि आज भी हमारे विश्वास को प्रभावित किया है! 🙏
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यीशु मसीह के 12 शिष्य कौन थे?
मुख्य वचन:
मत्ती 10:2-4 (Hindi Bible):नाम जानिए 👇
"अब बारह प्रेरितों के नाम ये हैं: पहला, शमौन जो पतरस कहलाता है, और अन्द्रियास उसका भाई; और याकूब जब्दी का पुत्र, और यूहन्ना उसका भाई; फ़िलिप्पुस और बरथुलमै; थोमा और मत्ती चुंगी लेने वाला; याकूब अलफ़ई का पुत्र, और लब्बी जो तद्दी कहलाता है; शमौन कनानी, और यहूदा इस्करियोती जिसने उसे पकड़वा दिया।"
👦1. पतरस (Simon Peter)
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पहचान: एक मछुआरा, जो यीशु का प्रमुख और अगुवा शिष्य बना।
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विशेष कार्य: यीशु ने उसे "चट्टान" कहा और कहा कि मैं अपनी कलीसिया इसी पर बनाऊंगा।
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Bible Reference:
मत्ती 16:18 — “और मैं तुझ से कहता हूं, कि तू पतरस है, और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊंगा...” -
कार्य: यीशु के बाद पहले प्रचारक बने; प्रेरितों के काम में प्रमुख भूमिका।
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मृत्यु: रोम में क्रूस पर उल्टा मारा गया।
👦1. पतरस (Simon Peter) — चट्टान पर खड़ा विश्वास
परिचय और पृष्ठभूमि:
पतरस का मूल नाम शमौन था (यूहन्ना 1:42)। वह बेतसैदा का निवासी था और पेशे से मछुआरा था। उसके भाई अन्द्रियास ने सबसे पहले उसे यीशु से मिलवाया। यीशु ने उसे “केफास” नाम दिया, जो यूनानी में “पतरस” (चट्टान) कहलाता है। (मत्ती 16:18)bible hindi1...प्रभु यीशु के साथ भूमिका: पतरस यीशु (jesus) के सबसे करीबी तीन शिष्यों (chelo) में से था। वह हर महत्वपूर्ण घटना — जैसे कि यीशु का रूपांतरण (मत्ती 17), मृत लड़की को जीवित करने (मरकुस 5:37), और गथसमनी बग़ीचे में यीशु के साथ प्रार्थना — में उपस्थित था। उसने यीशु को "मसीह" स्वीकारा (मत्ती 16:16), लेकिन बाद में डर के कारण तीन बार उसका इनकार किया (लूका 22:61)। यीशु ने पुनरुत्थान के बाद उसे क्षमा कर फिर से सेवकाई में बहाल किया (यूहन्ना 21)।
2...सेवाकार्य और प्रचार: पतरस ने पिन्तेकुस्त के दिन पहला प्रचार किया, जिससे 3000 लोग विश्वास में आए (प्रेरितों के काम 2:41)। उसने यहूदियों को सुसमाचार सुनाया, और अन्यजातियों के लिए भी राह खोली — खासकर जब उसने कोर्नेलियुस के घर में प्रवेश किया (प्रेरितों के काम 10)। वह शुरुआती कलीसिया का स्तंभ बना और उसने 1 और 2 पतरस पत्रियाँ लिखीं।
3...खानपान और जीवनशैली: एक साधारण मछुआरे की तरह उसका आहार मछली और रोटी रहा होगा। यीशु ने पुनरुत्थान के बाद उसे कोयले की आग पर पकी हुई मछली और रोटी दी (यूहन्ना 21:9-13), जो उसकी सादगीपूर्ण जीवनशैली को दर्शाता है।
4...मृत्यु और विरासत: इतिहासकारों के अनुसार, पतरस को रोम में उल्टा क्रूस पर मारा गया क्योंकि उसने कहा कि वह प्रभु के समान मरने योग्य नहीं है। उसकी मृत्यु ने उसका अद्भुत समर्पण दर्शाया। पतरस की शिक्षाएँ आज भी मसीही विश्वास की नींव हैं।
😀2. अन्द्रियास (Andrew)
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पहचान: पतरस का भाई और पहला शिष्य जिसने यीशु को पहचाना।
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कार्य: यूनानियों को यीशु के पास लाया (यूहन्ना 12:20-22)।
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मृत्यु: ग्रीस में X के आकार के क्रूस पर शहीद।
2. अन्द्रियास (Andrew) — दूसरों को यीशु तक लाने वाला प्रेरित
परिचय और पृष्ठभूमि:
अन्द्रियास, पतरस का भाई और बेतसैदा का निवासी था (यूहन्ना 1:44)। वह भी मछुआरा था और पहले यूहन्ना बप्तिस्मा देनेवाले का शिष्य chela था (यूहन्ना 1:35-40)। जब उसने यीशु को देखा, तो वह तुरंत पहचान गया कि यह मसीह है, और उसने अपने भाई पतरस को आकर बताया:
यूहन्ना 1:41 — “उसने पहिले अपने भाई शमौन से मिलकर कहा, हम को वह मिला है जो मसीह कहलाता है।”
1...प्रभु यीशु के साथ भूमिका: अन्द्रियास वह पहला शिष्य था जिसने मसीह (jesus christ) को पहचान कर दूसरों को उसके पास लाया। वह भी पतरस की तरह यीशु की यात्रा में शामिल हुआ — चाहे वह काना का विवाह हो, पांच रोटियों और दो मछलियों का चमत्कार (यूहन्ना 6:8-9), या यूनानियों को यीशु से मिलवाने का प्रसंग (यूहन्ना 12:20-22)। अन्द्रियास का हृदय मिशनरी था — वह हर किसी को मसीह से मिलवाना चाहता था।
2..सेवाकार्य और प्रचार: बाइबिल में अन्द्रियास के प्रचार कार्यों की अधिक जानकारी नहीं है, परंतु परंपरागत इतिहास कहता है कि उसने स्किथिया, ग्रीस और एशिया माइनर तक प्रचार किया। कुछ विद्वानों के अनुसार उसने बाइजेन्टाइन साम्राज्य (आज का तुर्की और यूनान) में मसीह का प्रचार किया। वह एक गहरे आत्मिक दर्शन और नम्रता वाला प्रेरित था।
3...खानपान और जीवनशैली: जैसे उसका भाई पतरस, वैसे ही उसकी जीवनशैली भी सादा थी — मुख्य रूप से मछली, रोटी, और क्षेत्रीय यहूदी भोजन। उसका जीवन सरल, त्यागमय और सेवा-प्रधान था।
4...मृत्यु और विरासत: इतिहास बताता है कि उसे ग्रीस के पैत्रास नगर में ‘X’ आकार के क्रूस पर चढ़ाया गया, जिसे आज “सेंट एंड्रयूज़ क्रॉस” कहा जाता है। उसने क्रूस पर दो दिन तक प्रचार किया। उसका जीवन हमें सिखाता है कि मसीह की सेवा केवल मंच पर नहीं, लेकिन दूसरों को मसीह तक पहुँचाने में है।
👻3. याकूब (James, Zebedee का पुत्र)
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पहचान: यूहन्ना का भाई, जो "गरज के पुत्र" कहलाए।
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कार्य: यीशु के करीब तीन शिष्यों में से एक; परिवर्तन के समय उपस्थित।
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Bible Reference:
मरकुस 5:37 — “और वह पतरस और याकूब और यूहन्ना को छोड़ किसी को साथ न ले गया।” -
मृत्यु: राजा हेरोदेस द्वारा तलवार से मारा गया (प्रेरितों के काम 12:2)।
3. याकूब (James) — बलिदान का पहला प्रेरित
परिचय और पृष्ठभूमि:
याकूब, ज़बदी का पुत्र और यूहन्ना का बड़ा भाई था (मरकुस 1:19-20)। वह मछुआरे के परिवार से था और गलील की झील के किनारे रहता था। जीसस ने उसे और उसके भाई को “बोअनर्गेस” कहा — अर्थात् “गरज के पुत्र” (मरकुस 3:17), जो उनके जोशीले स्वभाव को दर्शाता है। वह यीशु के प्रारंभिक और प्रमुख शिष्यों में से एक था।
1...प्रभु यीशु के साथ भूमिका: याकूब, पतरस और यूहन्ना के साथ तीन सबसे करीबी शिष्यों में से था। वह रूपांतरण (मत्ती 17:1), याईर की बेटी को जीवित करने (मरकुस 5:37), और गथसमनी बग़ीचे में यीशु की पीड़ा के समय उपस्थित था (मत्ती 26:37)। एक बार उसने और उसके भाई ने यीशु से स्वर्ग में विशेष स्थान की माँग की, जिस पर यीशु ने उन्हें अपने आने वाले दुःख को सहने की चुनौती दी (मरकुस 10:35-40)।
2...सेवाकार्य और प्रचार: प्रेरितों के काम में याकूब की सेवकाई का वर्णन कम है, परंतु वह शुरुआती कलीसिया में अग्रणी रहा। उसने यहूदियों को प्रचार किया और प्रभु jesus की गवाही दी। यरूशलेम में उसकी सेवकाई प्रखर थी और उसने खतरे की परवाह नहीं की।
3...मृत्यु और बलिदान:
प्रेरितों के काम 12:1-2 के अनुसार, राजा हेरोदेस ने याकूब को तलवार से मरवा दिया — वह पहला प्रेरित था जिसने मसीह के लिए शहादत दी।“उसने याकूब को, यूहन्ना के भाई को तलवार से मरवा डाला।”
4...खानपान और जीवनशैली: याकूब एक साधारण यहूदी जीवन जीता था। मछुआरा होने के कारण वह समुद्री भोजन (जैसे मछली) और रोटी पर निर्भर रहता था। वह तेज़, निष्ठावान और समर्पित सेवक था।
5...विरासत: याकूब का बलिदान आज भी मसीही विश्वासी के लिए समर्पण और निष्ठा का प्रतीक है। उसने अपने जीवन से दिखा दिया कि मसीह की सेवा में मृत्यु भी गौरवपूर्ण हो सकती है।
4. यूहन्ना (John)
पहचान: याकूब का भाई, "प्रेम का शिष्य"।
कार्य: यूहन्ना रचित सुसमाचार, 3 पत्रियाँ और प्रकाशितवाक्य ग्रंथ लिखे।
Bible Reference:
यूहन्ना 13:23 — “उसके चेलों में से एक, जिस से यीशु प्रेम रखता था...”मृत्यु: प्राकृतिक मृत्यु मानी जाती है।
4. यूहन्ना (John) — प्रेम और सत्य का प्रेरित
परिचय और पृष्ठभूमि:
यूहन्ना, ज़बदी का पुत्र और याकूब का छोटा भाई था (मरकुस 1:19-20)। वह भी मछुआरा था और गलील की झील पर काम करता था। जीसस ने उसे और याकूब को “बोअनर्गेस” कहा, जिसका अर्थ है “गरज के पुत्र” — जो उनके स्वभाव की गंभीरता और दृढ़ता को दर्शाता है (मरकुस 3:17)। यूहन्ना, यीशु के सबसे करीबी शिष्यों में से एक था।
1..प्रभु यीशु के साथ भूमिका: यूहन्ना ने प्रभु के हर महत्त्वपूर्ण क्षण में भाग लिया
रूपांतरण का पर्वत (मत्ती 17:1)
गथसमनी बग़ीचा की प्रार्थना (मत्ती 26:37)
क्रूस के नीचे उपस्थित एकमात्र शिष्य — जहाँ यीशु ने उसे अपनी माँ मरियम की देखभाल सौंपी (यूहन्ना 19:26-27)
यूहन्ना को “प्रेमी शिष्य” कहा जाता है, क्योंकि वह यीशु के हृदय के अत्यंत समीप था (यूहन्ना 13:23)।
लेखन और सेवाकार्य:
यूहन्ना ने यूहन्ना का सुसमाचार, तीन पत्रियाँ (1, 2, 3 यूहन्ना) और प्रकाशितवाक्य की पुस्तक लिखी। उसका लेखन प्रेम, सत्य और अनंत जीवन की गहराई को दर्शाता है:
1 यूहन्ना 4:8 — “जो प्रेम नहीं करता, वह परमेश्वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है।”
प्रकाशितवाक्य की पुस्तक यूहन्ना को पतमोस द्वीप पर परमेश्वर के दर्शन के रूप में मिली थी (प्रकाशितवाक्य 1:9)।
2...खानपान और जीवनशैली: यूहन्ना की जीवनशैली संयमित और आत्मिक रही। वह संभवतः एक उपवास करनेवाला और आत्म-नियंत्रण में रहनेवाला प्रेरित था, जिसका ध्यान गहराई से आत्मिक साधना पर था।
3...मृत्यु और विरासत: यूहन्ना एकमात्र प्रेरित था जो प्राकृतिक मृत्यु मरा। परंपरा के अनुसार, उसे उबलते तेल में डाला गया, लेकिन वह चमत्कारिक रूप से जीवित बच गया। बाद में उसे पतमोस द्वीप पर निर्वासित किया गया। वह लगभग 90 वर्ष की उम्र तक जीवित रहा और वहाँ से प्रकाशितवाक्य की पुस्तक लिखी।
4...विरासत: यूहन्ना की शिक्षा “प्रेम में बने रहो” आज भी मसीही विश्वास की नींव है। उसका जीवन यह सिखाता है कि सच्चा प्रेम केवल शब्दों से नहीं, बल्कि बलिदान, आत्म-निवेदन और आज्ञाकारिता से प्रकट होता है।
5. फ़िलिप्पुस (Philip)
कार्य: यूनानी लोगों को यीशु से मिलवाया (यूहन्ना 12:21-22)।
Bible Reference:
यूहन्ना 1:45-46 — “...फ़िलिप्पुस ने नथनएल से कहा, हम को वह मिल गया है... यीशु नासरी।”मृत्यु: फ्रायगिया (Phrygia) में शहीद।
5. फिलिप्पुस (Philip) — सवाल पूछने वाला और सुसमाचार फैलाने वाला प्रेरित
परिचय और पृष्ठभूमि:
फिलिप्पुस बेतसैदा नगर का निवासी था, वही नगर जहाँ पतरस और अन्द्रियास भी रहते थे (यूहन्ना 1:44)। वह संभवतः अन्द्रियास का मित्र था, जिसने उसे यीशु से मिलवाया। उसका नाम यूनानी मूल का है, जो यह दर्शाता है कि वह यूनानी संस्कृति से भी परिचित था।
1...प्रभु यीशु के साथ भूमिका:
फिलिप्पुस उन प्रारंभिक शिष्यों में से था जिन्हें यीशु ने व्यक्तिगत रूप से बुलाया:
यूहन्ना 1:43 — “यीशु ने फिलिप्पुस से कहा, मेरे पीछे हो ले।”
फिलिप्पुस को प्रायः ऐसा व्यक्ति देखा गया जो तर्क करता और सवाल करता था। जब यीशु ने 5000 लोगों को भोजन देने की चुनौती रखी, तो फिलिप्पुस ने गणना की:
यूहन्ना 6:7 — “फिलिप्पुस ने उसे उत्तर दिया, दो सौ दीनार की रोटियाँ भी उन के लिये काफी न होंगी...”
बाद में जब कुछ यूनानी व्यक्ति यीशु jesus christ से मिलना चाहते थे, तो वे फिलिप्पुस के पास आए (यूहन्ना 12:20-22)। इससे प्रतीत होता है कि वह यूनानी भाषी यहूदियों से भी जुड़ा हुआ था।
2...सेवाकार्य और प्रचार: फिलिप्पुस ने प्रचार कार्य के लिए यूनानी क्षेत्रों की यात्रा की। परंपरागत इतिहास के अनुसार, उसने फ्रिजिया (Phrygia) और हिरापोलिस में मसीह का प्रचार किया। उसने मूर्तिपूजा और झूठी शिक्षाओं का विरोध किया।
3..खानपान और जीवनशैली: उसकी जीवनशैली सादी और यहूदी रीति के अनुसार रही होगी। प्रचार यात्रा के दौरान उसने मसीह के लिए त्याग और सताव सहन किया।
4...मृत्यु और विरासत: इतिहास के अनुसार, फिलिप्पुस को हिरापोलिस में एक पेड़ से उल्टा लटकाकर मार डाला गया। यह भी कहा जाता है कि उसने क्रूस पर मरने से पहले वहाँ एक रानी को मसीह में विश्वास दिलाया।
5...विरासत: फिलिप्पुस का जीवन हमें सिखाता है कि सवाल पूछना गलत नहीं, बल्कि विश्वास की खोज में मददगार हो सकता है। वह तर्क करनेवाला और साथ ही प्रचार करनेवाला प्रेरित था।
6. बरथुलमै (Bartholomew / नथनएल)
कार्य: ईमानदार और निर्दोष व्यक्ति।
Bible Reference:
यूहन्ना 1:47 — “यीशु ने नथनएल को अपने पास आते देखा और कहा, देखो, यह इस्राएली सच्चा है, जिस में कुछ कपट नहीं।”मृत्यु: आर्मेनिया में खाल उतारकर मार डाला गया।
6. बरथोलोमियूस (Bartholomew) — निष्कपट विश्वास और दूर-दराज़ प्रचार का प्रेरित
परिचय और पृष्ठभूमि:
बरथोलोमियूस का नाम चारों सुसमाचारों की सूचियों में आता है (मत्ती 10:3, मरकुस 3:18, लूका 6:14, प्रेरितों 1:13)। अधिकतर विद्वान मानते हैं कि वह वही व्यक्ति है जिसे यूहन्ना के सुसमाचार में नथनएल कहा गया है (यूहन्ना 1:45-51)। वह कनानी (Galilee) क्षेत्र का निवासी था, संभवतः काना गाँव का।
1...प्रभु यीशु के साथ भूमिका:
जब फिलिप्पुस ने नथनएल से कहा कि उसे मसीह मिला है — यीशु नासरी — तो नथनएल ने संदेह से पूछा:
लेकिन जब यीशु ने उससे मुलाकात की, तो उसने तुरंत कहा:
यूहन्ना 1:49 — “हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र है; तू इस्राएल का राजा है।”
यूहन्ना 1:46 — “नासरत से कोई अच्छा भी आ सकता है?”
यीशु ने भी उसके बारे में कहा:
यूहन्ना 1:47 — “देखो, यह सचमुच एक इस्राएली है; जिस में कुछ कपट नहीं।”
इससे उसकी निष्कपटता, विश्वास और सरल स्वभाव प्रकट होता है।
2...सेवाकार्य और प्रचार: बाइबल में उसके प्रचार कार्यों का सीधा वर्णन नहीं है, लेकिन परंपरागत इतिहास कहता है कि उसने भारत, फारस (ईरान), आर्मेनिया, और मिस्र तक जाकर प्रचार किया। आर्मेनिया में उसे मसीही विश्वास का पहला प्रचारक माना जाता है।
3...खानपान और जीवनशैली: बरथोलोमियूस एक शांत, सादा जीवन जीने वाला व्यक्ति था। प्रचार यात्रा में उसने कई सांस्कृतिक समाजों का सामना किया और सरल जीवन बिताया — जिसमें मुख्यतः यहूदी भोजन और स्थानीय अनाज-फल आदि शामिल रहे होंगे।
4...मृत्यु और विरासत: इतिहास के अनुसार, उसे जिंदा चमड़ी उधेड़कर और फिर सिर काटकर शहीद किया गया। यह घटना संभवतः आर्मेनिया में हुई थी। उसके बलिदान को आज भी अनेकों चर्चों में याद किया जाता है।
5...विरासत: बरथोलोमियूस का जीवन निष्कपट विश्वास, गहरे अध्ययन और विश्वासी प्रचारक की मिसाल है। उसका समर्पण, विशेषकर भारत जैसे दूर देश में प्रचार करना, एक प्रेरणा है कि सुसमाचार सीमाओं से नहीं रुकता।
7. थोमा (Thomas)
पहचान: संदेह करने वाला शिष्य।
कार्य: भारत तक सुसमाचार लेकर आया।
Bible Reference:
यूहन्ना 20:27 — “तब उसने थोमा से कहा, अपनी उंगली यहाँ रख, और मेरे हाथों को देख...”
मृत्यु: भारत (चेन्नई) में शहीद हुआ।
7. थोमा (Thomas) — संदेह और विश्वास का प्रेरित
परिचय और पृष्ठभूमि:
थोमा, जिसे दिडिमस भी कहा जाता है (जो "जुड़वां" का अर्थ है), यीशु के बारह प्रेरितों में से एक था (मरकुस 3:18, मत्ती 10:3)। वह गलील क्षेत्र का निवासी था और अन्य प्रेरितों की तरह, मसीह के साथ निकट संबंध रखता था।
1...प्रभु यीशु के साथ भूमिका: थोमा को एक समय संदेह करने वाले शिष्य के रूप में जाना जाता है। जब यीशु ने अपनी मृत्यु और पुनरुत्थान के बारे में भविष्यवाणी की, तो थोमा ने सीधे सवाल किया:
यूहन्ना 14:5 — “हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहां जा रहा है। हम रास्ता कैसे जान सकते हैं?”
इसके उत्तर में यीशु ने कहा: “मैं ही मार्ग, सत्य और जीवन हूं” (यूहन्ना 14:6)।
2...पुनरुत्थान के बाद संदेह: थोमा ने jesus के पुनरुत्थान पर विश्वास नहीं किया जब तक कि वह व्यक्तिगत रूप से न देखे और न ही उसके हाथों में कील के छेद न देखे। यह घटना हमें "दुविधा और विश्वास" के संघर्ष को दर्शाती है।
यूहन्ना 20:25 — “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के निशान न देख लूंगा और अपनी अंगुली से उन निशानों को न छू लूंगा, तब तक मैं विश्वास नहीं करूंगा।”
लेकिन जब यीशु ने उसे व्यक्तिगत रूप से दर्शन दिया, तो उसने अपनी उंगली यीशु के हाथों में डाली और विश्वास किया:
यूहन्ना 20:28 — “हे मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर!”
3...सेवाकार्य और प्रचार: थोमा ने प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के बाद भारत में सुसमाचार का प्रचार किया। वह भारत के मलबार तट पर कलीसिया की स्थापना करने के लिए प्रसिद्ध है। परंपरा के अनुसार, उसने भारत में कई चमत्कार किए और वहाँ मसीह का प्रचार किया।
4...मृत्यु और विरासत: थोमा को भारत में कूडनकुल्लम (मलयालम राज्य) में शहीद किया गया। उसे भाला मारकर मारा गया, जो उसकी विश्वास की गहरी श्रद्धा का प्रतीक बन गया।
प्रेरितों के काम 21:8-9 में उसका उल्लेख हुआ है।5...विरासत: थोमा का जीवन हमें यह सिखाता है कि संदेह और विश्वास के बीच की यात्रा में भी परमेश्वर jesus का साथ होता है। उसने न केवल संदेह को दूर किया, बल्कि भारत में मसीह के सुसमाचार का प्रचार करते हुए अपना जीवन बलिदान किया।
8. मत्ती (Matthew / लेवी)
पहचान: चुंगी लेने वाला; बाद में सुसमाचार लेखक।
कार्य: मत्ती रचित सुसमाचार लिखा।
Bible Reference:
मत्ती 9:9 — “...यीशु ने उस से कहा, मेरे पीछे हो ले; वह उठ कर उसके पीछे हो लिया।”मृत्यु: इथियोपिया में शहीद।
8. मत्ती (Matthew) — कर वसूलक से सुसमाचार लेखक तक का परिवर्तन
परिचय और पृष्ठभूमि:
मत्ती को अन्य जगहों पर लेवी भी कहा गया है (मरकुस 2:14, लूका 5:27)। वह एक यहूदी कर वसूलक (tax collector) था, जो कफरनहूम में रोमनों के लिए कर वसूलता था। यहूदियों के लिए कर वसूलक को पापी और विश्वासघाती माना जाता था, क्योंकि वे रोमन सत्ता के साथ जुड़े होते थे।
1...प्रभु यीशु के साथ भूमिका: मत्ती को यीशु जिसुस ने सीधे बुलाया
मत्ती 9:9 — “वह वहाँ से आगे बढ़ा और मत्ती नाम एक मनुष्य को चुंगी पर बैठे देखा और उससे कहा, ‘मेरे पीछे हो ले।’ वह उठकर उसके पीछे हो लिया।”
यह एक अद्भुत परिवर्तन था — एक पापी, समाज से तिरस्कृत व्यक्ति, अब मसीह का अनुयायी बन गया। मत्ती ने एक भोज रखा जिसमें अन्य पापी भी आए, और यीशु ने उन्हें प्रेमपूर्वक शिक्षा दी (मत्ती 9:10-13)। इससे मत्ती की मेहमाननवाज़ी और प्रचार में उत्साह झलकता है।
2...लेखन और सेवाकार्य: मत्ती ने मत्ती का सुसमाचार लिखा, जो यहूदियों के लिए लिखा गया था और यह दिखाता है कि यीशु jesus ही मसीहा है जिसकी भविष्यवाणी पुराने नियम में हुई थी। उसने यीशु की शिक्षाओं, उपदेशों और चमत्कारों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया।
3...खानपान और जीवनशैली: कर वसूलक होने के कारण वह पहले धन-लोलुप रहा होगा, लेकिन मसीह के अनुयायी बनने के बाद उसने सादा, आत्मिक जीवन अपनाया। उसने धन का त्याग किया और प्रचार के जीवन को चुना।
4...सेवाकार्य और प्रचार यात्राएं: इतिहास बताता है कि मत्ती ने यहूदिया, एथियोपिया, और संभवतः फारस तक प्रचार किया। उसने अनगिनत यहूदियों और अन्यजातियों को मसीह के प्रति आकर्षित किया।
5...मृत्यु और विरासत: परंपरा के अनुसार, मत्ती की एथियोपिया या फारस में शहादत हुई। कुछ के अनुसार, उसे तलवार से मारा गया तो कुछ के अनुसार उसे जलाया गया।
6...विरासत: मत्ती का जीवन हमें यह सिखाता है कि कोई भी व्यक्ति इतना पापी नहीं कि उसे यीशु बदल न सके। एक कर वसूलक को प्रेरित बनाकर, यीशु ने उद्धार की सामर्थ्य को दर्शाया।
9. याकूब (James)
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कम जानकारी: "छोटा याकूब" कहलाया।
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कार्य: सुसमाचार फैलाना।
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मृत्यु: मिस्र या पर्शिया में शहीद।
9. याकूब (James) — विश्वास और सेवा का प्रेरित
परिचय और पृष्ठभूमि:
याकूब, जिसे अल्फeus का पुत्र कहा जाता है, बारह प्रेरितों में से एक था (मत्ती 10:3, मरकुस 3:18)। वह गलील के कफरनहूम क्षेत्र का निवासी था और उसके बारे में बहुत कम जानकारी बाइबल में मिलती है। उसे याकूब "छोटा" (अल्फ़ायोस का बेटा) भी कहा जाता है, ताकि उसे याकूब "बड़ा" (ज़बदी का पुत्र) से अलग किया जा सके। कुछ विद्वान मानते हैं कि वह यीशु का चचेरे भाई भी हो सकता है, लेकिन यह निश्चित नहीं है।
1...(jesus)प्रभु यीशु के साथ भूमिका: याकूब को यीशु के साथ विशेष समय बिताने का अवसर मिला। वह उन चंद शिष्यों में से था जो यीशु के साथ विशेष घटनाओं में शामिल थे, जैसे रूपांतरण पर्वत (मत्ती 17:1) और गथसमनी बग़ीचे में प्रार्थना (मत्ती 26:37)। याकूब का विश्वास मजबूत था और वह कभी पीछे नहीं हटा, भले ही उसकी भूमिका कभी प्रमुख नहीं रही।
2..सेवाकार्य और प्रचार: याकूब ने मसीह (jesus) का प्रचार कार्य शुरू किया, और वह पहले शिष्यों में से था जिसे शहीद किया गया। वह शायद सीरिया और भारत में प्रचार कार्य करता था। परंपरागत रूप से कहा जाता है कि याकूब को यरूशलेम में मारे जाने से पहले लंबे समय तक कलीसिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ी।
3...मृत्यु और विरासत: याकूब का निधन हरोद एंटिपस के आदेश पर हुआ। उसे तलवार से मारा गया और यह शहादत मसीह के प्रति उसके अडिग विश्वास को दर्शाती है। याकूब का शहीदी के रूप में बलिदान मसीह के मार्ग पर चलते हुए एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गया।
प्रेरितों के काम 12:2 — “उसने याकूब, जो यूहन्ना का भाई था, तलवार से मार डाला।”
4...विरासत: याकूब का जीवन विश्वास, समर्पण और सेवा का प्रतीक बन गया। उसके बलिदान से यह स्पष्ट होता है कि मसीह के लिए प्यार और विश्वास हमें किसी भी चुनौती का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
10. तद्दी (Thaddaeus / लब्बी / यहूदा, याकूब का पुत्र)
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Bible Reference:
यूहन्ना 14:22 — “यहूदा (जो इस्करियोती नहीं था) ने कहा, प्रभु, यह क्या बात हुई कि तू अपने आप को हम पर प्रगट करेगा...” -
कार्य: फारस में प्रचार किया।
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मृत्यु: फारस में शहीद।
10. यहूदा (Judas) — विश्वास का प्रश्न और सेवा का प्रेरित
परिचय और पृष्ठभूमि:
यहूदा, जिसे "दुगुना" या "लब्बेयूस" (Thaddaeus) भी कहा जाता है, jesus के बारह (chelo)प्रेरितों में से एक था (मत्ती 10:3, मरकुस 3:18)। वह शमौन के साथ गवाही देने वाले प्रेरितों में से एक था। यहूदा का नाम बाइबल में अक्सर कम आता है और उसका चरित्र विशेष रूप से उसकी भूमिका के कारण छाया में रहता है, लेकिन उसे एक विश्वासी और समर्पित शिष्य के रूप में देखा जाता था।
1...प्रभु यीशु के साथ भूमिका: जब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वह फिर से उनसे मिलकर, एक दूसरे के साथ रहेगा, तो यहूदा ने उत्सुकता से पूछा:
यूहन्ना 14:22 — “प्रभु, तू हमसे क्यों अपारदर्शी बात करता है? तू हमें ही क्यों प्रकट कर रहा है, और संसार को क्यों नहीं?”
यहूदा का प्रश्न एक गहरी समझ को दर्शाता है, कि वह जानना चाहता था कि परमेश्वर का अनुग्रह किस तरह से हर किसी तक पहुंचेगा। यीशु ने उसे उत्तर दिया, यह कहकर कि जो उसे प्रेम करेगा और उसके आदेशों का पालन करेगा, वही परमेश्वर से प्रेम प्राप्त करेगा।
2...सेवाकार्य और प्रचार: इतिहास और परंपराएं बताती हैं कि यहूदा ने मशरिकी देशों जैसे इराक और अरब क्षेत्रों में सुसमाचार का प्रचार किया। वह उन शिष्यों में से था, जिन्होंने यीशु के संदेश को दूर-दराज स्थानों तक फैलाया। उसकी भूमिका मुख्य रूप से ईश्वर के सुसमाचार को फैलाने में रही, और उसने यीशु के दृष्टिकोण को साझा किया।
3...मृत्यु और विरासत: यहूदा की शहादत के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन परंपरागत रूप से यह माना जाता है कि उसे मृत्यु के बाद, युद्ध या हत्या के रूप में बलिदान दिया गया। हालांकि, कुछ ऐतिहासिक स्रोतों में यह उल्लेख है कि उसे किसी प्रकार के मसीही विश्वास के प्रचार के कारण मार डाला गया था।
4...विरासत: यहूदा का जीवन हमें यह सिखाता है कि परमेश्वर का कार्य कभी भी अप्रत्याशित स्थानों और व्यक्तियों के माध्यम से हो सकता है। उसका संदेह और प्रश्न परमेश्वर के साथ एक गहरे रिश्ते की तलाश का प्रतीक है। उसके जीवन के सिद्धांत के द्वारा, हमें यह सिखने की प्रेरणा मिलती है कि विश्वास में सवाल और तलाश वैध हैं, लेकिन यह हमारे प्रभु की ओर एक सच्चे दिल से बढ़ने का तरीका है।
11. शमौन कनानी (Simon the Zealot)
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पहचान: जोशीला राष्ट्रवादी (Zealot)।
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कार्य: मिस्र और उत्तरी अफ्रीका में प्रचार।
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मृत्यु: ईरान में शहीद।
11. शमौन (Simon) — जोशीला समर्पण और सुसमाचार का प्रेरित
परिचय और पृष्ठभूमि:
शमौन को "ज़ीली" (Zealot) के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है एक धार्मिक उग्रवादी या राष्ट्रीयता से जुड़ा व्यक्ति (लूका 6:15, मत्ती 10:4)। ज़ीलोट यहूदी स्वतंत्रता संग्रामियों का एक समूह था, जो रोम साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई लड़ते थे। शमौन का यह नाम उसे इस समूह से जोड़ता है, और यह भी संकेत देता है कि वह यीशु jesus christ के साथ आने से पहले एक जोशीला देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी था।
1...प्रभु यीशु के साथ भूमिका: जब शमौन ने यीशु jesus का अनुसरण किया, तो उसे अपने पुराने विचारों और जीवनशैली को छोड़ना पड़ा। यीशु ने उसे न केवल भौतिक स्वतंत्रता के लिए, बल्कि आत्मिक स्वतंत्रता के लिए भी बुलाया। शमौन, जो पहले राजनीति और देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ा करता था, अब यीशु के साथ मिलकर आत्मिक मुक्ति का संदेश फैलाने लगा। उसका परिवर्तन और समर्पण यह दर्शाता है कि यीशु के सुसमाचार में हर किसी के लिए स्थान है, चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि से क्यों न आता हो।
2...सेवाकार्य और प्रचार: थोमा और मत्ती की तरह, शमौन ने भी सुसमाचार फैलाने के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों में यात्रा की। ऐतिहासिक परंपरा के अनुसार, शमौन ने मिस्र, पारस (ईरान), और ब्रितानी द्वीपों में मसीह का प्रचार किया। उसे सुसमाचार का प्रचार करते हुए कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उसने कभी अपना विश्वास नहीं छोड़ा।
3...मृत्यु और विरासत: शमौन की शहादत की परंपरा बहुत स्पष्ट नहीं है, लेकिन ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, उसे सिर काटकर मार दिया गया। एक और स्रोत बताता है कि उसे लकड़ी के क्रूस पर लटका कर शहीद किया गया। उसकी शहादत उसके गहरे समर्पण और विश्वास को दर्शाती है।
4...विरासत: शमौन का जीवन हमें सिखाता है कि यीशु के सुसमाचार में कोई भेदभाव नहीं है, और किसी भी व्यक्ति का अतीत उसे ईश्वर के काम में भागीदार बनने से रोक नहीं सकता। शमौन का परिवर्तन यह दिखाता है कि परमेश्वर हर किसी को बदलने की शक्ति रखता है, और वह किसी भी व्यक्ति को अपनी योजना का हिस्सा बना सकता है।
12. यहूदा इस्करियोती (Judas Iscariot)
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कार्य: यीशु को 30 चांदी के सिक्कों में धोखा दिया।
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Bible Reference:
मत्ती 26:14-16 — “...यहूदा इस्करियोती... यीशु को पकड़वाने पर तय कर लिया।”
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मृत्यु: अपराधबोध से आत्महत्या कर ली (मत्ती 27:5)।
12. यहूदा इस्करियोत (Judas Iscariot) — विश्वासघात और शहादत का शिष्य
परिचय और पृष्ठभूमि:
यहूदा इस्करियोत (12 शिष्य) बारह प्रेरितों में से एक था, और वह यीशु के सबसे विवादित शिष्य के रूप में प्रसिद्ध है (मत्ती 10:4, मरकुस 3:19)। उसका नाम यहूदा था, और “इस्करियोत” का अर्थ है "केरीओथ का निवासी", जो यह दर्शाता है कि वह यहूदी इलाका, यहूदी राज्य का निवासी था। यहूदा का चरित्र बाइबल में विश्वासघात के प्रतीक के रूप में चित्रित किया गया है, क्योंकि उसने अपने गुरु यीशु को धोखा दिया और उसे फसवाने के लिए धोखाधड़ी की योजना बनाई।
1..प्रभु यीशु के साथ भूमिका: यहूदा ने यीशु के साथ यात्रा की, चमत्कारों और उपदेशों का गवाह बना, और वह मसीह के विश्वासपात्र शिष्यों में से एक था। हालांकि, यीशु की शरणागतिवादी सेवा और कलीसिया के स्थापना कार्यों में वह समर्पित नहीं था। वह धन के प्रति लालची था और बगैर किसी सच्चे विश्वास के यीशु का अनुसरण करता था।
यूहन्ना 12:6 — “यहूदा ने यीशु से कहा, ‘यह सामग्री क्यों नहीं बिकी और निर्धनों को दी गई?’ इसने यह नहीं कहा, क्योंकि यह निर्धनों के लिए था, परंतु वह चुराने वाला था और उसकी थैली में सामान रखता था।”
2...विश्वासघात: यहूदा का सबसे कुख्यात कार्य था प्रभु यीशु का विश्वासघात करना। उसने 30 चाँदी के सिक्कों के बदले यीशु को धोखे से यहूदी महायाजक और सैन्य अधिकारियों को सौंप दिया।
मत्ती 26:14-16 — "तब एक व्यक्ति, यहूदा इस्करियोत, जो बारह में से एक था, महायाजकों के पास गया और उनसे कहा, ‘तुम मुझे कितना दोगे, और मैं उसे तुम्हें सौंप दूंगा?’ उन्होंने उसे तैंतीस चांदी के सिक्कों में सौदा किया।”
3...शहादत और मृत्यु: विश्वासघात के बाद, यहूदा को गहरा पछतावा हुआ। बाइबल के अनुसार, उसने अपना निर्णय बदलने का प्रयास किया और चाँदी के सिक्कों को महायाजकों के पास लौटाया, लेकिन वे उसे स्वीकार नहीं करते थे। अंततः, यहूदा ने आत्महत्या कर ली, जो कि उसकी गहरी हताशा और पश्चाताप का प्रतीक था।
मत्ती 27:5 — “तब उसने चांदी के सिक्के मन्दिर में फेंके और चला गया, और उसने जाकर अपनी जान को समाप्त किया।”
4...विरासत: यहूदा इस्करियोत का जीवन विश्वासघात और आत्मिक पतन का प्रतीक बन गया। उसकी भूमिका ने यह दर्शाया कि भले ही एक व्यक्ति प्रारंभ में सही मार्ग पर चलता हो, लेकिन यदि उसका दिल भ्रष्ट हो और वह धन या अन्य सांसारिक चीजों के पीछे भागे, तो वह परमेश्वर के उद्देश्य को नष्ट कर सकता है। उसका जीवन हमें यह चेतावनी देता है कि परमेश्वर की योजना को धोखा देना और पाप में लिप्त होना खतरनाक परिणाम ला सकता है।
इस प्रकार, यीशु के बारह शिष्यों की जिंदगियां बहुत कुछ सिखाती हैं। उनके जीवन से हमें विश्वास, समर्पण, प्रेम, सेवा, और ईश्वर के प्रति अपनी निष्ठा को मजबूत करने का मार्गदर्शन मिलता है।bible hindi
यहूदा के स्थान पर नया शिष्य — मत्तीया (Matthias):
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प्रेरितों के काम 1:26 — “...और चिट्ठियाँ डालने पर मत्तीया का भाग निकला, और वह उन ग्यारह प्रेरितों में गिना गया।”
अक्सर पूछे जानेवाले सवाल 🙋♂️👇 Top 5 FAQs
❓1. यीशु के 12 प्रेरितों के नाम क्या हैं?
उत्तर:
यीशु के 12 चेलों ( प्रेरितों ) के नाम हैं: पतरस, अंद्रियास, याकूब (जब्दी का पुत्र), यूहन्ना, फिलिप्पुस, बरथुलमै, थोमा, मत्ती, याकूब (अल्फ़ायोस का पुत्र), तद्दी (यहूदा), शमौन ज़ीली और यहूदा इस्करियोत (जिसने यीशु को धोखा दिया)।
👉 ये नाम बाइबल में मत्ती 10:2-4 में दिए गए हैं।
❓2. यीशु ने 12 शिष्यों को क्यों चुना था?
उत्तर:
यीशु ने 12 शिष्यों को इसलिए चुना ताकि वे उसके साथ रहें, उसकी शिक्षाओं को समझें और फिर संसार में जाकर प्रचार करें (मरकुस 3:14)। ये 12, इस्राएल के 12 गोत्रों के प्रतीक भी थे।
📖 “ताकि वे उसके साथ रहें और प्रचार के लिए भेजे जाएं।” (मरकुस 3:14)
❓3. किस प्रेरित ने यीशु को धोखा दिया और क्यों?
उत्तर:
यहूदा इस्करियोत वह प्रेरित था जिसने यीशु को 30 चांदी के सिक्कों में धोखा दिया bible hindi (मत्ती 26:14-16)। उसने प्रभु को धार्मिक अगुवों के हाथ सौंप दिया, लेकिन बाद में पछताया और आत्महत्या कर ली।
❓4. क्या यीशु के सभी प्रेरित शहीद हुए थे?
उत्तर:
हाँ, लगभग सभी प्रेरित मसीह (jesus)के प्रचार के लिए शहीद हुए। केवल यूहन्ना ही थे जिन्होंने प्राकृतिक मृत्यु पाई। पतरस को उल्टा क्रूस पर, थोमा को भारत में भाले से और अन्य प्रेरितों को विभिन्न देशों में शहीद किया गया।
❓5. यीशु के 12 प्रेरितों की कहानियाँ बाइबल में कहाँ मिलती हैं?
उत्तर:
यीशु के 12 प्रेरितों (chelo) की सूची मत्ती 10:2-4, मरकुस 3:16-19, लूका 6:14-16, और प्रेरितों के काम 1:13 में दी गई है। उनके कार्यों का विस्तृत विवरण Acts (प्रेरितों के काम) नामक पुस्तक में है।
निष्कर्ष:
jesus प्रभु येशु के 12 शिष्यों ने उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान के बाद दुनिया भर में सुसमाचार फैलाने का कार्य किया। वे प्रेरित कहलाए और उन्होंने मसीही विश्वास की नींव रखी।👉बाइबल हिन्दी
प्रमुख संदेश:बाइबल हिन्दी
यूहन्ना 15:16 — “तुम ने मुझे नहीं चुना, परन्तु मैंने तुम्हें चुना है, और ठहराया है कि तुम जाकर फल लाओ।”
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